चावल के दाने

एक नगर में एक सेठ अपने तीन बेटों के साथ रहते थे| सेठ जी ने अपने कारोबार को बड़ी मेहनत से आगे बढ़ाया था| उनके तीनों बेटे अभी छोटे ही थे, फिर भी वो यही से ही तय कर लेना चाहते थे कि अपने कारोबार का भर आगे चलकर तीनों में से किसे देंगे| लेकिन उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा था अपने उत्तराधिकार के मुखिया के रूप में किस बेटे को चुनें|

बहुत सोच विचार के बाद उसने तीनों बेटों को बुलाया और उन्हें एक-एक मुट्ठी चावल दिए और ये चावल एक साल बाद लौटने के लिए कहा|
बड़ा बीटा अपने पिता पर बहुत श्रद्धा रखता था इसलिए उसने सरे चावल पुड़िया में बांधकर पूजा में रख दिए|
दूसरा बेटा थोड़ा मनमौजी किस्म का था, उसने सरे के सरे चावल चिड़ियाओं को खाने को दाल दिए |
तीसरा बेटा गंभीर किस्म का था, उसने सोच कि पिताजी ने ये चावल कुछ सोच समझकर ही दिए होंगे| बहुत सोचने के बाद उसने चावल के दानों को खेतों में लें जाकर बो दिया|

एक साल बीत जाने के बाद सेठ ने तीनों बेटों को बुलाया और उनसे अपने दिए हुए चावल मांगे| बड़े बेटे ने चावल कि करीने से बाँधी पुड़िया पिता के आगे रख दी| दूसरे बेटे ने एक मुट्ठी नए चावल लाकर पिता को दे दिए लेकिन अनुभवी पिता समःगए कि ये नए चावल हैं|

जब तीसरे बेटे से उन्होंने चावलों की मांग की तो वह उठकर बहार गया और थोड़ी देर बाद नौकर के साथ एक बोरा लेकर प्रवेश किया| बोरा चावल से पूरी तरह भरा हुआ था| यह देखकर सेठजी ने पुछा - "मैंने तो तुम्हे सिर्फ एक मुट्ठी चावल दिए थे फिर ये एक बोरा चावल कहाँ से आए"?

"हाँ पिताजी, आपने तो सिर्फ एक मुट्ठी चावल ही दिए थे लेकिन मैंने उन चावलों को काफी सोचने विचरने के बाद बो दिया और अब नतीजा आप के सामने है"|

यह सुनकर सेठजी बड़े खुश हुए और उन्होंने अपने तीसरे बेटे को अपनी सारी जिम्मेदारी सौंप दी|

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