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वाल्मीकि की कहानी

वाल्मीकि ऋषि रामायण जैसे महाग्रंथ के रचयिता थे | लेकिन उनकी कहानी बड़ी ही अनोखी है | वाल्मीकि ऋषि पूर्व में एक डाकू हुआ करते थे | उनका नाम रत्नाकर था | एक बार रस्ते पर जाते तीन ऋषियों को उन्होंने रोककर लूट लिया | ऋषियों ने उनसे पूछा कि ये लूटपाट तुम किसके लिए कर रहे हो, तो उन्होंने जवाब दिया कि मैं यह सब अपने परिवार के लिए कर रहा हूँ | ऋषियों ने कहा कि तुम अपने पत्नी बच्चों से यह बात पूछकर आओ, कि वो लोग तुम्हारे इस पाप में भागीदार हैं या नहीं | जब उन्होंने घर जाकर अपने पत्नी बच्चों से इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि तुम्हारे पाप में हम भागीदार नहीं हैं | यह सुनकर रत्नाकर यानि वाल्मीकि कि आँखें खुल गई | वे वापस ऋषियों के पास पहुंचे और उनसे ज्ञान पाने की इच्छा जाहिर की | ऋषियों ने उन्हें राम नाम का जप करने को कहा | वे गलती से इस मन्त्र का उल्टा जाप करने लगे और "राम" के स्थान पर "मरा-मरा" कहने लगे | सालो बाद जब ऋषि लौटे तो उन्होंने पाया कि डाकू रत्नाकर अभी भी गहरे ध्यान में डूबे हुए "मरा-मरा" कह रहे थे | यहाँ तक कि उनके शरीर पर चींटियों और दीमकों

राहुल की बिल्ली

राहुल ने एक बिल्ली पाल रखी थी, जिसका रंग काला था | राहुल उसे "साँवली" कहकर पुकारता था | परिवार के सभी लोग साँवली को बहुत प्यार करते थे | साँवली उनके परिवार के एक सदस्य के रूप में रहतु थी | राहुल स्कूल से आते ही उसके साथ खेलता था | उसे अपने कमरे में ही सुलाता था | राहुल के जन्मदिन पर उसके अंकल ने एक सफ़ेद झबरीला कुत्ता उपहार में दिया | राहुल उसे देखकर बहुत खुश हुआ | अब उसके दो पालतू दोस्त हो गए थे | राहुल ने कुत्ते का नाम भूरू रखा | भूरू के आने के बाद राहुल अब साँवली को ज्यादा समय नहीं दे पाता था | वह दोनों के साथ खेलना चाहता था, परन्तु साँवली भूरू से दोस्ती करना ही नहीं चाहती थी | उसे लगता था कि भूरू के आने के कारण ही राहुल अब उसकी ओर ज्यादा ध्यान नहीं देता | साँवली ने सोचा कि शायद भूरू का सफ़ेद रंग व झबरीलापन राहुल को आकर्षित करता होगा | उसे अपने काले रंग पर गुस्सा आया, लेकिन वह कर क्या सकती थी? दीपावली के पहले घर की पुताई हो रही थी | साँवली ने देखा कि सफ़ेद रंग की पेंट से दीवारों पर सफेदी चमक रही थी | दोपहर में जब रंगाई करने वाले खाना खाने गए तब साँवली पेंट और ब्रश लेकर

जिद्दी सोनू

सोनू एक होशियार और समझदार लड़का था | वह मुंबई में रहता था | उसने इस वर्ष सातवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की थी | उसे सभी प्यार करते थे, लेकिन जैसे कहा जाता है कि ज्यादा लड़-प्यार बच्चों को बिगाड़ देता है, उसी तरह सोनू भी बहुत जिद्दी हो गया था | उसका यही अवगुण उसके सारे गुणों पर पानी फेर देता था | अभी उसकी गर्मियों कि छुट्टियाँ चल रही थी | इन छुट्टियों में वह अपने मामा के घर जाना चाहता था | बस फिर वह अपने माता-पिता से मामा के घर जाने कि जिद करने लगा | उसके मामा इंदौर में रहते थे | उसके पिता ने उसे समझते हुए कहा - " बेटे! तुम अपने मामा के घर जरूर जाना, लेकिन हम अगले सप्ताह चलेंगे | इस सप्ताह मुझे समय नहीं है और तुम अकेले अपने मामा के घर नहीं जा सकते" | किन्तु सोनू हठ करने लगा और अब तो उसने तय कर लिया था कि वह अकेले ही अपने मामा के घर जायेगा | उसने फिर जिद करनी शुरू कर दी | सोनू के पिता ने उसे समझाया, किन्तु वह अपनी जिद के आगे किसी की भी बात नहीं माना | हारकर सोनू के पिता ने कहा - " ठीक है! तुम अपने मामा के घर जरूर जाओ, लेकिन रस्ते में ट्रैन से निचे मत उतरना, अपने सामान का ध्य

जादुई कालीन

मिनी एक बहुत प्यारी लड़की थी| वह अपने चाचा के पास रहती थी | मिनिको दूसरों कि मदद करना बहुत अच्छा लगता थी इसलिए सब उसे चाहते थे | कुछ दिनों सेमिनी बहुत परेशान थी क्योंकि उसके चाचा का जन्मदिन आ रहा था | उसने अभी तक उनके लिए कोई गिफ्ट नहीं ख़रीदा था | उसके चाचा जादूगर थे और वह उन्हें कुछ अलग तरह कि गिफ्ट देना चाहती थी | दुकान पर उसने बहुत से गिफ्ट देखे लेकिन उसे कुछ भी पसंद नहीं आ रहा था | तभी उसकी नजर एक कालीन पर पड़ी | दुकानदार ने उसे बताया कि कालीन बहुत पुराण है और कई जगह से फैट गया है | लेकिन मिनी नहीं मणि और उसने वह कालीन खरीद लिया | उसे पता था कि यह देखकर उसके चाचा बहुत खुश होंगे | जब उसने कालीन ख़रीदा वह नहीं जानती थी कि वह जादुई कालीन है और वह उड़ भी सकता है | असल में वह एक पारी का कालीन था जो खो गया था | वह कालीन तभी उड़ सकता था जब कोई सच्चे मन का व्यक्ति उस पर बैठे | और मिनी ऐसी ही लड़की थी | मिनी ने जब वह कालीन अपने चाचा को दिया तो वे बहुत खुश हुए | उन्होंने कहा कि बस इसे थोड़ा साफ करने कि जरूरत है | अगले दिन मिनी और उसके चाचा ने मिलकर कालीन को धोया और सिखाया | फिर मिनी ने धागा ले

तीन मछलियां

एक तलान में बहुत सारी मचिलियन रहा करती थी | इन ढेर सारी मछलियों में टिनी, मिनी, रिनी भी थीं | तीनों बहुत अच्छी सहेलियां थी, लेकिन तीनों का ही स्वाभाव बहुत अलग था | टिनी एकदम बड़ों की तरह व्यवहार करती थी | किसी भी काम को करने से पहले वह खूब सोच-विचार लेती थी | मिनी थोड़ी चालक थी | वह जैसा वक्त होता था, वैसा फैसला लेकर हमेशा मुसीबत से बच जाती थी | वह हमेशा खुश रहती थी | रिनी इन दोनों से बहुत अलग थी | वह किसी भी फैसले पर ज्यादा नहीं सोचती थी | उसका मानना था, जो भाग्य में लिखा है, वह होकर ही रहेगा| उसके इसी भाग्यवादी रवैए के कारण टिनी, मिनी उससे परेशान रहती थीं | एक दिन टिनी किनारे पर घूम रही थीं, तभी उसने दो मछुआरों की बात सुनी | वे दोनों कह रहे थे, " वाह इस तालाब में कितनी मछलियां है, कल हम यहीं आकर मछलियां पकड़ेंगे" | टिनी ने जैसे ही यह सुना, वह भागी-भागी रिनी-मिनी के पास आई और उन्हें पूरा वाकया कह सुनाया | टिनी ने अपना फैसला भी सुना दिया कि वह किसी मुसीबत में फंसना नहीं चाहती, इसलिए नहर के रस्ते आज ही दुसरे तालाब में चली जाएगी | उसने उन दोनों को भी नए तालाब में जाने क

सेवा का फल

बहुत पुरानी बात है| किसी शहर में किशन नाम का बढ़ई रहता था| वह रात-दिन मेहनत करता था, लेकिन फिर भी वह ज्यादा पैस नहीं कमा पाता था | जब उसने देखा कि इतनी मेहनत करने पर भी गरीबी उसका पीछा नहीं छोड़ रही है, तो उसने दूसरे शहर जाकर काम करने का निश्चया किया | जब वह शहर जा रहा तह, तो उसे रस्ते में एक गाय मिलीं| गाय बहुत बीमार थी | किशन ने सोचा यदि वह गाय को ऐसे ही छोड़कर गया तो वह मर भी सकती है| गाय के साथ छोटा बछड़ा भी था, इसलिए किशन को उस पर दया आ गई और वह वहीँ रूककर उनकी सेवा करने लगा| धीरे-धीरे गाय बिलकुल ठीक हो गई | किशन उनको लेकर शहर कि ओर चल दिया| शहर में एक जगह चलकर उसने गाय को बाँधा और रहने कि जगह ढूंढ़ने लगा | जब उसे कहीं जगह नहीं मिलीं तो वह पेड़ के नीचे बैठकर सुस्ताने लगा| उसी वक्त एक राहगीर वहां से निकला और किशन से दूध कि मांग की | किशन ने तुरंत दूध दहा और उसे दे दिया | बदले में राहगीर ने उसे रूपये दिए | उन रुपयों से किशन ने अपने लिए खाने का सामान और गाय के लिए चारा खरीदा | धीरे-धीरे इसी तरह किशन ने दूध बेचकर अच्छे पैसे जमा कर लिया | अब उसकी पत्नी और बच्चे भी शहर आकर उसकी मदद क

चावल के दाने

एक नगर में एक सेठ अपने तीन बेटों के साथ रहते थे| सेठ जी ने अपने कारोबार को बड़ी मेहनत से आगे बढ़ाया था| उनके तीनों बेटे अभी छोटे ही थे, फिर भी वो यही से ही तय कर लेना चाहते थे कि अपने कारोबार का भर आगे चलकर तीनों में से किसे देंगे| लेकिन उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा था अपने उत्तराधिकार के मुखिया के रूप में किस बेटे को चुनें| बहुत सोच विचार के बाद उसने तीनों बेटों को बुलाया और उन्हें एक-एक मुट्ठी चावल दिए और ये चावल एक साल बाद लौटने के लिए कहा| बड़ा बीटा अपने पिता पर बहुत श्रद्धा रखता था इसलिए उसने सरे चावल पुड़िया में बांधकर पूजा में रख दिए| दूसरा बेटा थोड़ा मनमौजी किस्म का था, उसने सरे के सरे चावल चिड़ियाओं को खाने को दाल दिए | तीसरा बेटा गंभीर किस्म का था, उसने सोच कि पिताजी ने ये चावल कुछ सोच समझकर ही दिए होंगे| बहुत सोचने के बाद उसने चावल के दानों को खेतों में लें जाकर बो दिया| एक साल बीत जाने के बाद सेठ ने तीनों बेटों को बुलाया और उनसे अपने दिए हुए चावल मांगे| बड़े बेटे ने चावल कि करीने से बाँधी पुड़िया पिता के आगे रख दी| दूसरे बेटे ने एक मुट्ठी नए चावल लाकर पिता को दे दिए लेकिन अ